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Showing posts from February, 2016

कलियुग के बच्चे

  सतयुग ने पूछा कलियुग से कहो,क्या सोचते हो तुम्हारे बच्चे कैसे होंगे?वो इठलाता हुआ बोला मेरे बच्चे,तुम्हारे बच्चों की तरह भोले नहीं बड़े शातिर होंगे।बचपन में दूध नहीं चिप्स और कुरकुरे के लिए रोयेंगे,जवानी में पानी नहीं शराब से मुंह धोएंगे।मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चों की तरह गीता और कुरान में नहीं,face book और whats app में विश्वास करेंगे।मेरे बच्चे दादा दादी की कहानी नहीं शीला और मल्लिका का डांस देख सोयेंगे।मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चों की तरह सच्चाई के आदर्श में दुःख सहकर किसी की सेवा नहीं करेंगे,बल्कि लोगों का गला काटकर अपनी जेब भरेंगे,जिस थाली में खाएंगे उसी में छेद करेंगे।वो शादी करके घर में नहीं,लिव इन रिलेशन से होटल में रहेंगे और पैसे के लिए तो माँ बाप की हत्या से भी परहेज नहीं करेंगे।और सुनो सतयुग भैया तुम्हारे बच्चे ज्ञान पाने के लिए जी जान लगा देंगे,और मेरे बच्चे चोरी डकैती,रिश्वतखोरी से सबकुछ हासिल कर ऐश करेंगे।क्योंकि मेरे बच्चे तो मेरे हैं-----------साभार-शंकर लाल,वैज्ञानिक अधिकारी इंदौर (मध्यप्रदेश)

Menstrual Cycle in Hindi

Menstrual Cycle in Hindi

क्या अनन्त के पार जाना सम्भव है? | Science Bloggers' Association of India

क्या अनन्त के पार जाना सम्भव है? | Science Bloggers' Association of India

क्या यही है धर्म का स्वरूप

पिछली शताब्दी में महान् दार्शनिक नीत्शे ने कहा था-ईश्वर मर चुका है।बहरहाल ईश्वर तो नहीं मरा अलबत्ता नीत्शे अवश्य स्वर्ग सिधार गए।इधर खबरें आ रही है कि दुनियां में 9 देश ऐसे है जहाँ धर्म ख़त्म होने के कगार पर है।धर्म ख़त्म होने का एक अर्थ ईश्वर का लोप होना भी हो सकता है क्योंकि धर्म ही है जो इंसान को ईश्वर से जोड़ता है।एक नास्तिक आदमी के लिए जो ईश्वर में विश्वास ही नहीं रखता उसके लिए ईश्वर के न होने या फिर यूँ कहे कि ईश्वर के जीने-मरने का कोई मतलब ही नहीं है।इस खबर को पढ़ कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ।आश्चर्य तो तब होता जब यह समाचार आता कि जिन देशों में धर्म समाप्त होने के कगार पर है वहां धर्म परायणता बढ़ने की बात होती।जिन 9 देशों के लोगों का धर्म से मोह भंग हो रहा है वे सब समृद्ध है।वहां लोगों का जीवन स्तर हमसे कहीं बढ़िया है।वहां के लोगों की गिनती हमसे ज्यादा ईमानदारों में होती है।इन देशों में भृष्टाचार भी औरों स काफी कम है।स्विट्जरलैंड, न्यूज़ीलैंड,कनाडा,नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया तो ऐसे देश है जहाँ बसने के लिए दुनिया वाले लालायित रहते है।एक मजेदार बात देखिये इन समृद्ध,सुखी,और यायावर देशों में धर्म

शनि की साढ़ेसाती

जय शनि महाराज की।अब आप पूछेंगे की आज गुरुवार को अचानक शनि महाराज की याद कैसे आ गई।दरअसल आजकल शनि खतरे में है क्यों कि जागरूक महिलाओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।सॉरी!शनिदेव के विरुद्ध नहीं बल्कि उन ठेकेदारों के खिलाफ जिन्होंने शनिदेव की नाकाबन्दी करके उन्हें अपने कब्जे में ले रखा है।अब महिलाये मांग कर रही है की वे भी शनिसिंगनापुर के चबूतरे पर चढ़कर शनि पर तेल चढ़ायेगी।वैसे अगर क्रांतिकारी महिलायें बुरा न माने तो एक बात कहूँ-काहे को अपना समय,शक्ति और दिमाग ख़राब कर रही है।सत्य तो यह है की शनि कोई देवता नहीं है मात्र एक ग्रह है।शंकराचार्य महोदय की दस बातों से असहमति रखते हुए भी में उनकी इस बात का समर्थन करता हूँ की शनि की पूजा उसे बुलाने के लिए नहीं बल्कि दूर भगाने के लिए की जाती है,दुष्ट से मिलने का अर्थ है जी का जंजाल हो जाना।तो मेरी आदरणीय माताओं-बहनों क्या आपके पास और कोई आवश्यक काम नहीं बचा जो इस फालतू के पचड़े में पड़ी हो।वैसे तो मेरे एक मित्र ने बड़ी जोरदार बात कही है कि अगर महिलाएं लोभी कथावाचकों,फ़र्ज़ी उपदेशकों,लालची संतों के प्रवचनों में जाना छोड़ दें तो उनका समय काटना मुश्किल हो

कुछ बने,न बनें इन्हें जीने दो

नंबरों की लड़ाई बच्चों को एक अंधे कुएं की और दखेल रही है।उनमे अवसाद के साथ-साथ ईर्ष्या का भाव भी पनपा रही है।क्या ऐसी ही हताश-निराश और ईर्ष्यालु बचपन और जवानी की उम्मीद हमें है?अब भी वक्त है,सँभालने का।खींच लाइए उन्हें इस लड़ाई से और अच्छी तरह से समझा दीजिये की यह पढाई है,कोई जीवन मरण का प्रश्न नहीं।पढाई पूरी जिन्दगी का एक छोटा सा हिस्सा है,उससे ज्यादा जरुरी है उनका मजबूत व्यक्तित्व और जिम्मेदार नागरिक होने की काबिलियत।A के बाद A+,हर परीक्षा में बच्चों को कामयाब कराने की आपकी यह भूख बच्चों पर बहुत भारी पड़ रही है।कोटा में कोचिंग कर रहे बच्चों की आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।यह बेहद डरावना है।माता-पिता की महत्वाकांक्षी प्रवर्ति बच्चों की बलि ले रही है।स्कूली बच्चों की परीक्षाये और बोर्ड की परीक्षाये सिर पर है।घरों में इन दिनों अघोषित कर्फ्यू लागू हो चूका है।बच्चों  का खेलना-कूदना सब बंद है।एक बार फिर सोचें ऐसे माहोल पर।कहीं ऐसा न हो की आपकी यह बेहूदी अपेक्षा बच्चे का भविष्य अंधकार में कर दे।बच्चा कुछ बने या न बने,कम से कम उसे खुले आसमान में जीने तो दो।परीक्षाओ में उच्च अंक ला