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Showing posts from January, 2016

गलती करना मानव का स्वभाव है

  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और गलतियां करना उसका स्वभाव है।जीवन के हर मोड़ पर जाने अनजाने गलतियां होती ही रहती है और गलती का होना एक सामान्य घटना है।लेकिन अपने द्वारा हुई गलतियों के बाद अलग-अलग व्यक्ति का अलग नजरिया होता है एक व्यक्ति अपनी गलती को सबक के रूप में लेता है और भविष्य में वैसी गलती दुबारा न हो ऐसा प्रयास करता है जबकि दूसरा अपने द्वारा की गई गलती को अपने ऊपर हावी कर लेता है और उसको लेकर एक अफ़सोस जाहिर करता है की काश!मैंने ऐसा नहीं किया होता तो मेरे साथ ऐसा नहीं होता।दिन रात बस ऐसे ही सोचता रहता है और आत्म ग्लानि से ग्रसित हो जाता है।एक अन्य व्यक्ति गलती को गलती मानने के लिए ही तैयार नहीं होता और अपने आपको हर जगह सही सिद्ध करने की कोशिश में ही लगा रहता है।इन तीनो स्थितियों में पहली स्थिति सर्वश्रेष्ठ है और भविष्य के लिए उन्नतिकारक है।क्योंकि ऐसा व्यक्ति वास्तविकता में जी रहा है।वह मानता है की गलती हर इंसान से होती है और में भी एक इंसान हूँ।अगर मुझसे गलती हो गई और उससे कोई बुरा परिणाम मुझे देखने को मिला तो चलो अच्छा हुआ आगे से में ऐसी गलती की पुनरावृति नहीं होने दूंगा।उसकी

चिन्ता कितनी सार्थक

  कल हमने चिन्ता ओर तनाव से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की चर्चा के साथ इसके प्रकारों पर चर्चा की।आज हम चर्चा करते हैं कि चिन्ता अधिकांश भविष्य को लेकर होती है।वर्तमान क्षण की कभी किसी को चिन्ता नहीं होती,चाहे यह क्षण कितनी भी परेशानी भरा होगा।व्यक्ति हमेशा अगले क्षण की ही चिन्ता करता रहता है क्योंकि अगला क्षण हमेशा अनिश्चित होता है और उसको लेकर एक अनजान भय से हम भयभीत रहते हैं और यह भय ही हमारी सभी चिन्ताओं का कारण होता है।मजे की बात तो यह है की यह भय भी हमारी कल्पना की उपज ही होता है और इसके जिम्मेदार भी हम स्वयं होते हैं।यदि इस भय को मन से निकाल दिया जाये तो चिन्ता और तनाव हमसे कोसों दूर होंगे।हम भावी क्षण को लेकर हमेशा आशंकित रहते हैं और सोचते रहते हैं की कहीं ऐसा हो गया तो? बस ये ऐसा हो गया की तस्वीर हम खुद अपने दिमाग में बना लेते हैं यही तस्वीर हमें डराती है और यह डर ही चिन्ता का कारण बनता है उदाहरणार्थ बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाते हैं तो पहले ही कई बिमारियों की तस्वीर दिमाग में बना लेंगे और सोचेंगे कहीं डॉक्टर ने यह बता दिया तो,कहीं ये बीमारी बता दी तो और दिखाने के 

चिन्ता छोड़ो, सुख से जीयो

 चिन्ता और तनाव ये दोनों शब्द दिखने में तो सामान्य शब्दों जैसे ही नजर आते हैं लेकिन ये मानव के सबसे बड़े शत्रु है।जितना नुकसान एक शत्रु नहीं पहुंचा सकता उससे कई गुना नुकसान ये पहुंचा देते हैं।आज जितनी बीमारियाँ देखने को मिल रही है उनका सबसे बड़ा कारण तनाव है शेष अन्य कारण इतने अधिक प्रभावशाली नहीं है।उच्च रक्तचाप,रक्तशर्करा,ह्रदय सम्बंधित रोग,हार्मोन्स सम्बंधित रोग जो आज बहुतायत में देखने को मिलते हैं इनमें चिन्ता और तनाव बहुत बड़ा कारण होता है।लेकिन इस कारण को हमेशा नजर अंदाज कर दिया जाता है।चिकित्सक किसी रोगी से कहते भी हैं की चिंता फ़िक्र छोड़कर मस्त रहा करो तो अमूमन रोगी का जवाब होता है "डॉक्टर जी मेरे किस बात की चिन्ता में तो एकदम मस्त ही रहता हूँ"डॉक्टर चेहरे को देखकर भांप रहा है की अंदर इसके घुन लगा हुआ है लेकिन वो बन्दा उसकी बात को मंजूर नहीं करता और दिखाकर आने के बाद लोगों के बीच डॉक्टर की खिल्ली उड़ाता  नजर आता है और कहता है कि डॉक्टरों के कुछ समझ में तो आता नहीं और कह देते हैं की चिन्ता मत किया करो।जबकि यह वास्तविकता है चाहे हम स्वीकार करें या न करें।चलिए देखते है

दान का महत्व

  मनुष्य इस सृष्टि का सबसे विवेकशील और विकसित प्राणी है।कुदरत ने जो सोचने समझने की शक्ति इस मनुष्य नाम के प्राणी को दी है उतनी अन्य किसी प्राणी को नहीं दी।इसलिए मनुष्य ने ही सृष्टि के सफल सञ्चालन के लिए समय की जरुरत के हिसाब से नियम बनाये।इन्ही नियमों की श्रृंखला में उसने जब देखा कि इस सृष्टि में कुछ प्राणी तो बलिष्ठ हैं वहीँ कुछ बेहद कमजोर भी हैं,कुछ अपने जीवनकाल में बिमारियों कि गिरफ्त में भी आते हैं यहाँ तक मनुष्यों भी हर मनुष्य की क्षमता अलग-अलग पाई जाती है कुछ काफी मेहनती और कुछ मेहनत नहीं कर पाते,कुछ का स्वास्थ्य अच्छा रहता है वहीँ कुछ बिमारियों से घिरे नजर आते हैं।सभी प्राणियों की इस अलग-अलग शारीरिक क्षमता के कारण उनकी भोजन आदि कि अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को जुटा पाने कि क्षमता भी अलग-अलग पाई जाती है।कई प्राणी कभी कभार अपनी इन प्राथमिक आवश्यकताओं को जुटाने में असमर्थ पाये जाते हैं। तो मनुष्य ने दान कि परम्परा को विकसित किया और इसके लिए यह व्यवस्था बनाई कि जो मनुष्य सामर्थ्यवान है वे उन सभी प्राणियों की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें जो उन्हें पूरी करने में स्वयं समर्थ नहीं 

कंजूसी और मितव्ययिता

 कंजूसी और मितव्ययिता ये दो शब्द हर किसी को confuse करते हैं।कई बार तो इन्हें एक ही नजरिये से देख लिया जाता है।जबकि ये दोनों शब्द एक दूसरे से विपरीत है जहाँ कंजूसी एक व्यक्ति का दुर्गुण होती है वहीँ मितव्ययिता सदगुण।एक व्यक्ति मितव्ययी हो सकता है लेकिन कंजूस नहीं इसी प्रकार एक कंजूस भी मितव्ययी हो यह जरुरी नहीं होता।व्यवहार में देखने पर दोनों बचत करने वाले नजर आते है। तो फिर क्या अंतर होता है इनमे।इन दोनों के बीच का अंतर समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।एक व्यक्ति जिसकी उम्र 45-50 वर्ष की हो गई और किसी समय वह बीमार हो जाता है और महज इस कारण के कि किसी विशेषज्ञ चिकित्सक के पास जायेंगे तो वह महंगा पड़ेगा इसलिए सामान्य इलाज लेकर स्वस्थ भी हो जाता है।वहीँ एक दूसरा व्यक्ति जिसकी भी उम्र लगभग इतनी ही है और पहले व्यक्ति जैसी लक्षणों वाली बीमारी होने पर यह पता होते हुए भी की पहला व्यक्ति जो उसीका पडोसी है और सामान्य इलाज लेकर स्वस्थ हो चूका है और शहर के बढ़िया फिजिशियन के पास जाकर इलाज करवाता है और इसके लिए पहले की तुलना में दस गुना खर्च कर डालता है और आम जीवन में उसे घर में एक बल्ब भी बेवजह ज

यह आदमी आपकी जिन्दगी बदल सकता है

 हर इंसान दूसरे की कामयाबी को देखकर खुद भी कामयाब होने के सपने देखता है।और कामयाबी की चाहत दिल में होना मानव का सबसे बड़ा सदगुण है।अब प्रश्न यह उठता है की इस कामयाबी के लिए किया क्या जाये,किससे पूछा जाये,किस देवी देवता की पूजा की जाये,क्या अम्बानी बंधुओं की जैसे श्री नाथ जी को अपना इष्ट बनाया जाये?ऐसे अनगिनत प्रश्न मन में उठते रहते हैं की आखिर किससे पूछा जाये कामयाबी का रास्ता इस प्रश्न का सबसे सुन्दर रास्ता बताया है motivational speaker or images bazar के चीफ संदीप माहेश्वरी ने उनके अनुसार एक ही इंसान है जो आपकी जिन्दगी को बदल सकता है और वो हो सिर्फ आप स्वयं।आपके आलावा आपको कामयाब और नाकामयाब बनाने वाला कोई दूसरा नहीं हो सकता।यदि आप अपने आपको एक सफल इंसान के रूप में देखते हैं तो इस सफलता के जिम्मेदार आप स्वयं है और यदि आप अपने आपको असफल मानते है तो इसके लिए भी आप स्वयं ही जिम्मेदार हैं।दूसरा कोई भी आपको सफल और असफल नहीं बना सकता।लेकिन हम लोगों ने अपनी सोच को इस कदर सेट कर लिया कि हर सफलता और असफलता की जिम्मेदारी दूसरों पर डालना शुरू कर दिया।और इसके लिए तरह तरह के बहाने ढूंढ लिए किसी 

कुंडली मिलान

अजी साहब लडका सुन्दर सुशील,और पढ़ा लिखा है अपने पैरों पर खड़ा है आय भी काफी अच्छी है,परिवार भी खानदानी है सभी लोग मिलनसार है लेकिन दिक्कत यह आ गई कि अपनी लड़की मांगलिक है उसे मांगलिक लड़का ही चाहिए इसलिए टालना पड़ा।क्या करें बच्ची की जिंदगी का सवाल है।ऐसे शब्द आज के वैज्ञानिक युग में उन लोगों के मुख से सुनने को मिलते है जो अपने आपको ज्ञानी समझते है।और ये वे ही ज्ञानी लोग होते हैं जिनकी धार्मिक आस्था भी दृढ होती है।ये लोग धर्मशास्त्रों को प्रमाण मानते है,पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्वास करते हैं।और यह कहते हुए घूमते हैं कि होनी को कौन टाल सकता है।अब एक तरफ तो होनी को टाल नहीं सकते दूसरी तरफ मंगल दोष,कुंडली मिलान आदि सब अतार्किक बातों को प्रत्यक्ष से ज्यादा महत्त्व देते हैं।मैंने भी इस ज्योतिष शास्त्र को समझने और इसका भरपूर लाभ लेने कि कोशिश की और इसके लिए काफी पुस्तकों का अध्ययन किया।पुरे परिवार की कुंडलियों का विश्लेषण किया।आस पास के कई ज्योतिषियों से मिलकर मेरी जिज्ञासा प्रकट की।परिणाम जो निकला वो यह था की जितनों से मिला सबके अलग-अलग फलादेश थे और उनके पीछे अपने-अपने तर्क।लेकिन उनके त

खुश रहें और खुश रखें

  "जिंदगी जिंदादिली का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जीते हैं।"क्या खूबसूरत पंक्ति है।मन करता है एक माला लेकर सुबह शाम इसी पंक्ति को मन्त्र समझकर जप करता रहुं।चाहे संसार में कोई शाश्वत सत्य ना हो लेकिन मुझे तो यह शाश्वत सत्य नजर आता है।कारण कि जीना तो सबको है।क्योंकि वैलिडिटी तो सबको पूरी करनी ही होती है।अब यह हम पर निर्भर है कि हमें कैसी जिंदगी जीना है।खुश रहकर और औरों को खुश रखकर या मनहूस रहकर और औरों को भी मनहूस रखकर।अरे जिंदगी है तो संघर्ष तो रहेगा ही संघर्ष से निजात पाना हो तो पहले मरना पड़ेगा।कोई यह सोचे कि जब सबकुछ अनुकूल होगा तो ख़ुशी अपने आप आ जायेगी तो यह सोचना ही सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि सारी परिस्थितियां कभी अनुकूल नहीं हो सकती जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन का होना जरुरी है वैसे ही जिंदगी में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का चलना जरूरी होता है।बस जीना इन्ही के बीच में हैं।परिस्थितियों को भी यह महसूस हो जाना चाहिए कि इस व्यक्ति के सामने में लाचार हूँ।जब परिस्थितियों को लाचार करने की ताकत आ जायेगी तो उन्हें भी सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा।देखो फंडा एक ही है य

साधुओं की संगत कितनी तर्कसंगत

  जब में अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहा था तो पाठ्य पुस्तक में महात्मा कबीर दास जी के दोहे पढ़ने को मिले थे।उनका एक-एक दोहा अपने आप में एक दर्शन था।और पढ़कर उनकी गहराई में जाने में मुझे बड़ा आनंद आता था।उनका एक दोहा "कबीरा संगत साधू कि, बेगी करिजे जाइ।दुर्मति दूर गँवाइसि,देसी सुमति बताय।।अर्थात कबीर दास जी कहते हैं कि साधू (सज्जन पुरुष)की संगती जितनी जल्दी हो सके कर लेनी चाहिए ,वो आपकी कुबुद्धि दूर करके अच्छी बुद्धि का विकास कर देगा।उनके इस दोहे से में काफी प्रभावित रहा और जैसा की हमारे समाज में साधू उसे कहा जाता है जिसने सांसारिक मोह माया को छोड़कर विरक्ति का मार्ग अपना लिया हो।तो मेरे मन में भी कबीरदास जी के साधू शब्द की यही छवि बन गई थी।तो अच्छी बुद्धि विकसित करने के लालच में इस प्रकृति के लोगों के लिखे साहित्य पढ़े जहाँ भी इनके प्रवचन सुनने को मिले वे सुने।इनके साथ समय गुजारने का जब भी मौका मिला तो उस मौके का भी भरपूर लाभ लिया।जब इतना सब करने के बाद एक दिन सोचा कि चलो अब मूल्यांकन तो करें कि कितनी सदबुद्धि आई है तो परिणाम बिल्कुल विपरीत था।में भ्रमित था कि मुझे क्या करना चाह

एक बेटा तो होना ही चाहिए

 सदियों से हमारे समाज में एक धारणा बनी हुई है कि प्रत्येक माता पिता के एक लड़के का जन्म तो होना ही चाहिए।जिसके बेटा नहीं होता उसे अभागा समझा जाता है।लड़के की यह चाहत न चाहते हुए भी परिवार में संतानों की संख्या बढ़ा देती है जो बाद में एक सामान्य आय वाले परिवार की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने का काम करती है।आजकल तो लड़का पैदा करने के कई नुस्खे भी काम में लिए जाने लगे हैं ।कुछ शातिर प्रकृति के लोग तो इस चीज के विशेषज्ञ बने बैठे हैं और मजे से चांदी कूट रहे है ।बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग लड़के की चाहत में इनकी सेवाएं लेने से नहीं चूकते।उन भले मानसों को यह नहीं पता की लिंग का निर्धारण x और y क्रोमोसोम से निर्धारित होता है जिसे दुनिया की कोई दवा निर्धारित नहीं कर सकती ।इनका खेल केवल संभावना के सिद्धान्त के आधार पर चलता है।जब इनकी दवा के प्रयोग के बाद लड़का पैदा हो जाता है (जिसकी 50% संभावना तो हमेशा होती ही है)तो यह उसे एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते है ।और जब परिणाम विपरीत आता है तो दवा के प्रयोग करने में गलती होना बताकर या उसकी किस्मत ख़राब बताकर सारा दोष प्रयोग करने वाली महिला का बता देते है

शिष्टाचार है या प्रताड़ना

  न्यूमोनिया के एक रोगी को चिकित्सकों ने महज इसलिए गहन चिकित्सा इकाई में शिफ्ट कर दिया कि रोगी को साँस लेने में हो रही परेशानी के चलते थोड़ी विशेष देखरेख की आवश्यकता थी।यह बात जब नाते रिश्तेदारों और जान पहचान वाले लोगों के पास पहुंची तो अस्पताल में मिलने जुलने वालों का आवागमन शुरू हो गया और इसके साथ ही एक व्यक्ति जो उस परिवार का सबसे जिम्मेदार है मिलने आने वालों के प्रश्नो से घिर गया ।क्या हुआ बाउजी को? अचानक आई सी यू में क्यों ले लिया?कल तक तो ऐसा कुछ नहीं था महज खांसी जुकाम के,ये अचानक क्या हुआ?क्या कहा डॉक्टर ने?कहीं न्यूमोनिया वगैरह तो नहीं है ना?कहीं लूटने का चक्कर तो नहीं?फिर थोडा काँच में से नजर रोगी पर पड़ती है।अरे बाप रे इतनी सारी मशीनें लगा दी।तब तो शायद न्यूमोनिया ही होगा।अरे आपके तो बड़ी मुश्किल हो गई।अभी कुछ दिन पहले हमारे पडोसी के लड़के को भी न्यूमोनिया हुआ था डॉक्टरों ने 15 दिन तक आई सी यू में रखा था लेकिन बेचारा भगवान को प्यारा हो गया।मुझे तो इनके भी वैसा ही लग रहा है ।खैर कोई बात नहीं बेटा जो भगवान की मर्ज़ी जैसे वो रखेगा वैसे रहना पड़ेगा।तू चिंता मत कर हमारे लायक काम

सुख की खोज

  मित्रों वर्ष 2015 बीत गया है ओर 2016 का आगमन हो चूका है।बीते वर्ष में हमारी जिंदगी में हमें काफी कुछ खट्टे मीठे अनुभव हुए हैं कभी ख़ुशी के पल तो कभी गम के।जहाँ ख़ुशी के पलों में समय रुक नहीं पाया वहीँ गम के पलों में लगा मानों समय ठहर ही गया हो।इस नए वर्ष में भी कमोबेश सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा कभी ख़ुशी के पल होंगे तो कभी समस्याओ का अम्बार लगा होगा ।हमें इन समस्याओं के बीच से ही आनंद को खोजना होगा ।इनमे कुछ समस्याएं तो ऐसी होगी जिनके लिए हमें प्रयास करना होगा और हमारे प्रयास से इनका निराकरण होगा।कुछ समस्याएं थोडा समय लेकर स्वतः ही समाप्त हो जायेगी कुछ में थोडा ज्यादा समय लगेगा और कुछ ऐसी भी होगी जिनका निराकरण हमारे हाथ में नहीं होगा। तो ऐसे में हमें उन समस्याओं के लिए तो पुरजोर प्रयास करना है जिन्हें हम सुलझा सकते है ।परंतु जिनका समाधान हमारे वश में नहीं है उनके पीछे भाग दौड़ करके अपने जीवन के आनंद को नहीं छोड़ना है।ऐसी समस्याओं को कुदरत के भरोसे छोड़कर मस्त रहना है।तो आइये हम सब इस नए वर्ष में संकल्प लें की चाहे जैसी भी परिस्थिति सामने हो हम उसका डटकर मुकाबला करेंगे और इस 2016 को ए