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मनुष्य समझदार या बेवकूफ

दुनिया का सबसे समझदार और बेवकूफ प्राणी कौन ?  ‘स्मोकिंग इज् इंजीरियस् टू हेल्थ’  ‘एल्कोहल किल्स’ ‘गलोबल वार्मिंग विल बी द् कॉज ऑफ द् अर्थ डेस्ट्रेक्शन’  ‘डोंट मिक्स ड्रिंक एंड ड्राइव’  ‘सावधानी हटी दुर्घटना घटी’  ऊपर लिखी सभी पंक्तियाँ हम सबने न जाने कितनी बार पढ़ी है। खासकर उन्होंने तो सबसे अधिक पढ़ी है या पढ़ते हैं जो उन स्थानों, पदार्थों या वस्तुओं के सीधे सम्पर्क में आते हैं जिन पर ये सभी वाक्य उन्हें इस्तेमाल नहीं करने का विवेक जगाने के लिए वार्निंग या चेतावनी के रूप में लिखे होते हैं।  कहते हैं मानव सबसे अधिक समझदार और बुद्धिमान प्राणी है मगर यह देखकर सबसे अधिक आश्यर्य होता है कि प्राणियों की यही एक प्रजाति ऐसी है जो उसी डाल को अपने हाथों से काँटती है जिस पर वह बैठी होती है। अन्य सभी जीवधारी खतरा भाँपने के साथ ही अपना रास्ता बदल लेते हैं। मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो समृद्धि और विकास अर्थात आराम एवं विलासिता के नाम पर पहले नए-नए अनुसंधान करता है और फिर उन्हीं से खतरा होने का लेबल चेतावनी के रूप में चिपकाकर अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ लेता है।  कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है ?  मेर
#धारा_370_और_आर्टिकल_35_A परसो सुबह ग्यारह बजे से अब तक पूरा भारत इस अविश्वसनीय खुशी के लिए बधाई ले रहा है और दे रहा है। मैं भी आप सबको बधाई देती हूँ और आपकी बधाई स्वीकार करती हूँ, मगर कारण यह नहीं है कि अब आप और मैं वहाँ जाकर जमीन खरीद सकते हैं, यह भी नहीं कि अब वहाँ के वासियों को आँख दिखाकर कह सकते हैं कि देखो आखिर तुम हमें भारतीय कहते थे, अब तुम भी वो ही हो गए हो। छप्पर फाड़ कर मिलने पर मानव बौरा जाता है। हम कुछ बुद्धिजीवियों की मनोदशा भी परसो से ऐसी ही हो गई है। हम इस तरह की पोस्ट लगातार लिख रहे हैं जैसे हमने कश्मीर पर किसी लड़ाई में जीत हासिल करली हो, कोई राज्य हमारा नहीं था उसे हमने हथिया लिया हो, हम आज तक बेघर बैठे हो और वहाँ जमीन खरीदने पर ही हमें सिर पर छत मिलेगी। जो पहले से डरा है उसे और अधिक डराने का न तो हमें अधिकार है और न ही यह मानवीयता है। कहने के मायने यह है कि सामाजिक संस्था की सबसे छोटी इकाई परिवार होती है। उसके बाद मोहल्ला, गाँव, तहसील, जिला, राज्य आदि क्रमशः बढ़ते जाते हैं। अपने लिए आरक्षित अधिकारों को अनायास किसी और से बाँट लेने की बाध्यता किसी भी इकाई में
#माहवारी_को_टालना_खतरे_की_घंटी मैं जिस विषय पर आज बात करना चाहती हूँ वह आज के दिन देश में चल रहे कुछ अति वायरल मुद्दों जितना प्रसिद्ध नहीं है किंतु देश की आधी आबादी के स्वास्थय से जुड़ा है इसलिए देश के लिए अति महत्तवपूर्ण है। देश की आधी आबादी यानी मातृ शक्ति, माँ..........यानी संतानोपत्ति की अहम क्रिया, यह क्रिया जुड़ी है माहवारी से। माहवारी, वह प्रक्रिया जिसके अभाव में कदाचित् सृष्टि का क्रम ही रुक जाता। आज इस एक शब्द को टेबू के रूप में कुछ इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि आधुनिक पीढ़ी या यूँ कहूँ नारीवादी लोग खून सना सेनेटरी पेड हाथ में लेकर फोटो खींचवाना, नारी सम्मान का पर्याय समझते हैं। कुछ ऐसे परम्परावादी लोग भी है जो काली पॉलीथीन में सेनेटरी पेड को लेकर जाने, उन खास दिनों में महिलाओं और बच्चियों के अलग रहने, घर के पुरुषों से इस बात को छिपाने आदि की वकालत करते हैं। इन दोनों ही समूहों ने, धड़ल्ले से दिखाने और सबसे छिपाने के बीच की एक कड़ी को पूर्णतया गौण कर दिया है। यह कड़ी है तीज-त्यौहार एवं शादी-ब्याह के अवसरों पर माहवारी के समय महिलाओं की मनःस्थिति। कुछ वर्ष पहले तक बह
माहवारी क्या है? माहवारी 10-12 उम्र से शुरू होकर 45-50 साल तक स्त्रियों के शरीर में होने वाली स्वाभाविक बायोलॉजिकल प्रक्रिया है! इस प्रकिया में मानव शिशु बनने के लिए अनिवार्य अंडा बनता है और उस अंडे के निषेचित होने के बाद उसके पोषण के लिए आधार (परत) तैयार होता है! लेकिन जब अंडा उस माह निषेचित नहीं होता तो अंडे समेत ये परत शरीर से बाहर स्रावित कर दी जाती है जिससे कि यही प्रक्रिया अगले महीने फिर दोहरायी जा सके! इसी स्राव (जो 4 से 5 दिन तक होता है) को मासिक स्राव कहते हैं! बस इतनी सी बात है! यह एकदम प्राकृतिक प्रक्रिया है जो अगर न घटित हो तो हम आपमें से कोई नहीं होता! माहवारी कोई बीमारी नहीं, बल्कि स्त्री देह के स्वस्थ होने का प्रतीक है. ये स्राव न तो ‘अशुद्ध’ होता है और न ही अनहाइजीनिक! इससे जुड़ी भ्रांतियां और अंधविश्वास: हमारे समाज में माहवारी को जैसे महामारी ही बना दिया गया है: पूजा मत करो वरना भगवान गंदे हो जायेंगे, गाय को मत छुओ वरना वो बछड़ा पैदा नहीं कर सकेगी, पौधों को मत छुओ वरना उनमें फल नहीं आयेंगे, अचार मत छुओ वरना ख़राब हो जायेगा, किसी देव स्थान या पवित्र जगह पे मत जाओ वर

मीडिया डाक्टर : पौरूषता बढ़ाने वाले सप्लीमेंटस से सावधान !!-----मैं नहीं, अमेरिकी एफडीआई यह कह रही है....

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साझा संसार: 8. ईश्वर के होने और न होने के बीच...

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Vaichariki Sankalan: धार्मिक पाखण्ड : देवी

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