शनि की साढ़ेसाती

जय शनि महाराज की।अब आप पूछेंगे की आज गुरुवार को अचानक शनि महाराज की याद कैसे आ गई।दरअसल आजकल शनि खतरे में है क्यों कि जागरूक महिलाओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।सॉरी!शनिदेव के विरुद्ध नहीं बल्कि उन ठेकेदारों के खिलाफ जिन्होंने शनिदेव की नाकाबन्दी करके उन्हें अपने कब्जे में ले रखा है।अब महिलाये मांग कर रही है की वे भी शनिसिंगनापुर के चबूतरे पर चढ़कर शनि पर तेल चढ़ायेगी।वैसे अगर क्रांतिकारी महिलायें बुरा न माने तो एक बात कहूँ-काहे को अपना समय,शक्ति और दिमाग ख़राब कर रही है।सत्य तो यह है की शनि कोई देवता नहीं है मात्र एक ग्रह है।शंकराचार्य महोदय की दस बातों से असहमति रखते हुए भी में उनकी इस बात का समर्थन करता हूँ की शनि की पूजा उसे बुलाने के लिए नहीं बल्कि दूर भगाने के लिए की जाती है,दुष्ट से मिलने का अर्थ है जी का जंजाल हो जाना।तो मेरी आदरणीय माताओं-बहनों क्या आपके पास और कोई आवश्यक काम नहीं बचा जो इस फालतू के पचड़े में पड़ी हो।वैसे तो मेरे एक मित्र ने बड़ी जोरदार बात कही है कि अगर महिलाएं लोभी कथावाचकों,फ़र्ज़ी उपदेशकों,लालची संतों के प्रवचनों में जाना छोड़ दें तो उनका समय काटना मुश्किल हो जाये।शनि का प्रकोप कम करने का दावा करने वाले हर शनिवार को शहर भर के चौराहों पर हाथ में लोटा लिए दिखाई दे जाते हैं।शनिदेव की मूर्ति सहित ये लौटे किराये पर मिलते हैं।अगर कोई चाहे तो साप्ताहिक पार्ट टाइम जॉब कर सकता है।बहरहाल निवेदन यही है की जहाँ सम्मान ही नहीं दिया जाता वहां वे जाती ही क्यों है।जिस जगह उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाता उस जगह का बहिष्कार करें।न स्वयं जाये न अपने धणी और बच्चों को जाने दे लेकिन हो उल्टा रहा है।गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि"जहाँ आँखों में प्रेम नहीं और ह्रदय में नहीं नेह,तुलसी वहां न जाइये चाहे कंचन बरसे मेह।"अब तय तो आपको ही करना है।वैसे यह शनिसर तो हमसे जितना दूर रहे उतना ही ठीक।खेर अब आपकी तो आप जानों।

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