कंजूसी और मितव्ययिता

 कंजूसी और मितव्ययिता ये दो शब्द हर किसी को confuse करते हैं।कई बार तो इन्हें एक ही नजरिये से देख लिया जाता है।जबकि ये दोनों शब्द एक दूसरे से विपरीत है जहाँ कंजूसी एक व्यक्ति का दुर्गुण होती है वहीँ मितव्ययिता सदगुण।एक व्यक्ति मितव्ययी हो सकता है लेकिन कंजूस नहीं इसी प्रकार एक कंजूस भी मितव्ययी हो यह जरुरी नहीं होता।व्यवहार में देखने पर दोनों बचत करने वाले नजर आते है। तो फिर क्या अंतर होता है इनमे।इन दोनों के बीच का अंतर समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।एक व्यक्ति जिसकी उम्र 45-50 वर्ष की हो गई और किसी समय वह बीमार हो जाता है और महज इस कारण के कि किसी विशेषज्ञ चिकित्सक के पास जायेंगे तो वह महंगा पड़ेगा इसलिए सामान्य इलाज लेकर स्वस्थ भी हो जाता है।वहीँ एक दूसरा व्यक्ति जिसकी भी उम्र लगभग इतनी ही है और पहले व्यक्ति जैसी लक्षणों वाली बीमारी होने पर यह पता होते हुए भी की पहला व्यक्ति जो उसीका पडोसी है और सामान्य इलाज लेकर स्वस्थ हो चूका है और शहर के बढ़िया फिजिशियन के पास जाकर इलाज करवाता है और इसके लिए पहले की तुलना में दस गुना खर्च कर डालता है और आम जीवन में उसे घर में एक बल्ब भी बेवजह जलता मिल जाता है तो परिवार के सदस्यों को इसके लिए उलाहना देकर खुद अन्य काम छोड़कर पहले उस बल्ब को बंद करता है जबकि पहला ऐसी चीजों पर कोई ध्यान नहीं देता।इसमें पहला व्यक्ति कंजूस की श्रेणी का है और दूसरा मितव्ययी।हो सकता है मेरा यह आकलन अटपटा लगे कारण कि यहाँ पर में उस व्यक्ति को कंजूस बता रहा हूँ जिसे छोटे मोटे खर्चो की कोई परवाह नहीं है रही बात बीमारी के इलाज कि तो जब आदमी सामान्य चिकित्सा से ही स्वस्थ हो सकता है तो उसे फालतू में ही अधिक पैसे खर्च करने की क्या आवश्यकता है।वहीँ दूसरा व्यक्ति घर के एक बल्ब जलने की तो इतनी परवाह करता है और सामान्य इलाज से ठीक होने वाली बीमारी परअनावश्यक खर्च करता है।बिल्कुल आपकी बात भी सही है जिसे में मितव्ययी बता रहा हूँ उसे तो महामूर्ख बतलाना चाहिए।और आज लगभग हो भी यही रहा है।पैसा कहाँ खर्च करना बुद्धिमत्ता है और कहाँ मूर्खता।मैंने जो उपरोक्त आंकलन किया पहले उसके बारे में स्पष्टीकरण दे दूँ।जीवन का प्रथम उद्देश्य है एक स्वस्थ जीवन जीना इसे जीवन का पहला सुख कहा गया है ।चिकित्सा विज्ञानियों के मतानुसार 40 की उम्र के बाद से शरीर में कई ऐसी बिमारियों का अंदेशा बढ़ जाता है जिनका यदि समय पर पता चल जाये तो भविष्य के बड़े खतरों से बचा जा सकता है इसके लिए वे लोग कुछ साधारण सी जाँचे सालाना कराते रहने कि सलाह देते हैं और इसके बहुत बड़े लाभ मिलते हैं इस बात को दूसरे व्यक्ति ने समझा और इस आशय से फिजिशियन के पास गया कि इस बहाने वे सामान्य चेक अप भी हो जायेंगे जो इस उम्र में जरुरी होते हैं और उन पर किया गया खर्च खर्च न होकर एक प्रकार का विनियोग (investment)है जबकि घर में या कहीं भी यदि बिना जरुरत के बल्ब जलता है तो वह ऊर्जा का दुरूपयोग है व फिजूलखर्च की श्रेणी में आता है।पहले व्यक्ति के लिए न तो ऊर्जा की बचत महत्व रखती है और न ही खुद का स्वास्थ्य।मेरे कहने का मतलब यही है कि जहाँ पर स्वयं का या किसी और का हित नजर आये वहां पर दिल खोलकर खर्च होना चाहिए और जहाँ पर खुद का,किसी और का या राष्ट्र का नुकसान होता हो वहां पर बचत करनी चाहिए।जबकि सारा काम उल्टा हो रहा है गुटखा,तम्बाकू,शराब,शादियाँ,फैसन जैसे स्वयं,समाज और राष्ट्र के लिए हानिकारक मदों पर तो दिल खोलकर खर्च किया जा रहा है और स्वयं का स्वास्थ्य,परिवार और समाज का स्वास्थ्य,और राष्ट्र के स्वास्थ्य जैसी मदों पर पैसे बचाकर खुशियाँ मनाई जा रही है।आज की शादियों में हजारों लोगों को खाने पर महज अपनी शेखी बधारने के लिए बुलाया जा रहा है भले ही बड़े स्तर पर भोजन बनाये जाने से उसकी गुणवत्ता ख़राब होकर समाज को नुकसान ही पहुंचाए।

Comments

Popular posts from this blog

एक बेटा तो होना ही चाहिए

गलती करना मानव का स्वभाव है