खुश रहें और खुश रखें

  "जिंदगी जिंदादिली का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जीते हैं।"क्या खूबसूरत पंक्ति है।मन करता है एक माला लेकर सुबह शाम इसी पंक्ति को मन्त्र समझकर जप करता रहुं।चाहे संसार में कोई शाश्वत सत्य ना हो लेकिन मुझे तो यह शाश्वत सत्य नजर आता है।कारण कि जीना तो सबको है।क्योंकि वैलिडिटी तो सबको पूरी करनी ही होती है।अब यह हम पर निर्भर है कि हमें कैसी जिंदगी जीना है।खुश रहकर और औरों को खुश रखकर या मनहूस रहकर और औरों को भी मनहूस रखकर।अरे जिंदगी है तो संघर्ष तो रहेगा ही संघर्ष से निजात पाना हो तो पहले मरना पड़ेगा।कोई यह सोचे कि जब सबकुछ अनुकूल होगा तो ख़ुशी अपने आप आ जायेगी तो यह सोचना ही सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि सारी परिस्थितियां कभी अनुकूल नहीं हो सकती जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन का होना जरुरी है वैसे ही जिंदगी में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का चलना जरूरी होता है।बस जीना इन्ही के बीच में हैं।परिस्थितियों को भी यह महसूस हो जाना चाहिए कि इस व्यक्ति के सामने में लाचार हूँ।जब परिस्थितियों को लाचार करने की ताकत आ जायेगी तो उन्हें भी सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा।देखो फंडा एक ही है यदि घर पर कोई मेहमान आये या कोई भी जाना अनजाना सख्स आये और उसकी हम जैसी आवभगत करेंगे उसी के हिसाब से उसका हमारे यहाँ रुकना और भविष्य में पुनः आना जाना निर्भर करेगा।और यह निर्णय हमको करना है कि किसको रोकना और किसको भगाना है।बस जिसे रोकना हो उसका तहेदिल से स्वागत करो और जिसको भगाना हो उसके साथ औपचारिकता निभा दो अगला अपने आप समझ जायेगा।बस यही फंडा हर जगह काम करेगा।कोई बीमारी आई बस उसको लम्बा समय तक रोकना हो तो खूब आदर सत्कार करो रोने के लिए बैठ जाओ प्रत्येक मिलने जुलने वाले से उसका जिक्र करो सारे दिन रात उसीके बारे में सोचो।और यदि जल्दी छुटकारा पाना हो तो डॉक्टर से परामर्श करने की औपचारिकता निभा दो।किसी भी पल उसकी याद मन में मत आने दो किसी से भी उसकी चर्चा मत करो और चेहरे कि मुस्कान को बरक़रार रखो तो उसे भागना ही पड़ेगा।आर्थिक तंगी है तो उससे पिंड छुड़ाने के लिए प्रयास करो बस सबके सामने अपनी तंगी का रोना रोकर उसका स्वागत करने से बचो।कहने का मतलब है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो उसे अपनी ख़ुशी छीनने का अधिकार मत दो।में अपना उदाहरण पेश करके बताना चाहूँगा कि में इन परिस्थितियों में भी खुश हूँ और यह ब्लॉग लिखकर खुशियाँ बाँट रहा हूँ।में अपने माता पिता की इकलौती संतान हूँ।माता पिता दोनों वृद्ध और बीमार रहते हैं मेरी चार संतानों में से दो सेरिब्रल पाल्सी नामक बीमारी (एक ऐसी बीमारी जिसमे बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता और जिसका दुनिया भर में कोई प्रमाणिक इलाज उपलब्ध नहीं है)से ग्रसित है एक की उम्र 22 और दूसरे की 6 वर्ष की है।साथ में और कई जिम्मेदारियां है।लेकिन कभी इन परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता और उन बच्चों के लालन पालन में ही खुशियों को ढूंढ लिया है।किसी के सामने समस्या का बखान करना मेरी डिक्शनरी में नहीं है।यहाँलिख रहा हूँ तो भी इस उद्देश्य के साथ की कोई भी मेरा भाई या बहिन छोटी मोटी परेशानी के कारण अपनी खुशियों से दूर हो कम से कम उसे प्रेरणा मिले और वो खुशियों से नाता जोड़े।मेरा सपना बस एक ही है कि पूरी दुनियां मुझे खुश नजर आये।क्योंकि यदि परिवार का एक सदस्य भी खुश रहने कि कला सीख जायेगा तो वो पुरे परिवार को खुश रखेगा।और मुहल्ले या कॉलोनी का एक परिवार खुश रहेगा तो वो पुरे मोहल्ले को खुश रखेगा।इस तरह खुशियाँ बढ़ती रहेगी।खुश रहने और खुश रखने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है कि जिंदगी को सहज तरीके से लो,इसे बोझिल मत होने दो बस चलने दो जैसे चल रहा है।सकारात्मक प्रयासों के साथ दर्शक बनकर देखते रहो।यही तो जिंदगी है।

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