शिष्टाचार है या प्रताड़ना

  न्यूमोनिया के एक रोगी को चिकित्सकों ने महज इसलिए गहन चिकित्सा इकाई में शिफ्ट कर दिया कि रोगी को साँस लेने में हो रही परेशानी के चलते थोड़ी विशेष देखरेख की आवश्यकता थी।यह बात जब नाते रिश्तेदारों और जान पहचान वाले लोगों के पास पहुंची तो अस्पताल में मिलने जुलने वालों का आवागमन शुरू हो गया और इसके साथ ही एक व्यक्ति जो उस परिवार का सबसे जिम्मेदार है मिलने आने वालों के प्रश्नो से घिर गया ।क्या हुआ बाउजी को? अचानक आई सी यू में क्यों ले लिया?कल तक तो ऐसा कुछ नहीं था महज खांसी जुकाम के,ये अचानक क्या हुआ?क्या कहा डॉक्टर ने?कहीं न्यूमोनिया वगैरह तो नहीं है ना?कहीं लूटने का चक्कर तो नहीं?फिर थोडा काँच में से नजर रोगी पर पड़ती है।अरे बाप रे इतनी सारी मशीनें लगा दी।तब तो शायद न्यूमोनिया ही होगा।अरे आपके तो बड़ी मुश्किल हो गई।अभी कुछ दिन पहले हमारे पडोसी के लड़के को भी न्यूमोनिया हुआ था डॉक्टरों ने 15 दिन तक आई सी यू में रखा था लेकिन बेचारा भगवान को प्यारा हो गया।मुझे तो इनके भी वैसा ही लग रहा है ।खैर कोई बात नहीं बेटा जो भगवान की मर्ज़ी जैसे वो रखेगा वैसे रहना पड़ेगा।तू चिंता मत कर हमारे लायक काम हो तो बता देना।हम आधी रात को भी तैयार है किसी बात का संकोच मत करना।ठीक है अभी तो हम चलते हैं ।वो तो चले जाते हैं पर उस बेचारे को एक नई उलझन में डाल जाते हैहै।उनके जाते ही दूसरे और लोग आ जाते है और शुरू हो जाता है फिर वही सवाल जबाब का सिलसिला।वैसे ही प्रश्न वैसी ही सहानुभूति।एक त्तरफ बीमार की परवरिश और दूसरी तरफ इन शिष्टाचारियों की प्रताड़ना।बीमार तो ठीक होगा या न होगा लेकिन जब तक वह अस्पताल में रहेगा इन शिष्टाचारियों की मानसिक प्रताड़ना से घुट घुट कर मरने पर मजबूर जरूर हो जायेगा।आप कहेंगे एक तो वो अपना समय निकालकर मिलने को आ रहे हैं और में उन्हें प्रताड़ित करने वाला बता रहा हूँ ।तो अब आप बता दे की में उन्हें कौनसा विशेषण दूँ।आपको मीठा खाने की तलब लगी हो और में आपके मुंह में नमक उड़ेल दूँ तो आप मुझे कहाँ तक शुभचिंतक कहेंगे।जिस किसी भी परिवार में अगर कोई बीमार होता है तो बीमार और उसके परिजनों को जिन चीजों की आवश्यकता होती है वे हैं सम्बल,उत्साह और बीमारी के इलाज के प्रति सकारात्मक नजरिये की और ये शुभचिंतक इनके विपरीत प्रदान करते हैं निराशा, हतोत्साह और इलाज के प्रति नकारात्मकता।इसी प्रकार यदि किसी माँ की कोई संतान किसी जन्मजात विकृति की शिकार हो तो मिलने वाले (अधिकांश महिलाएं)भले ही और कोई बात पूछे ना पूछे यह जरूर बोल देगी"देख इस बिचारी की तो जिंदगी ही बर्बाद हो गई भगवान का इसने ऐसा क्या बिगाड़ा था जो इसे ऐसी ओलाद दी" भले ही वो माता अपनी संतान के भविष्य में स्वस्थ हो जाने की आशा के साथ उसकी परवरिश ख़ुशी ख़ुशी कर रही होगी लेकिन वो तो अपने शब्दों के बाण से उसे प्रताड़ित कर ही देगी।मेरे इन दो उदाहरणों के पीछे आशय यह है की हमें किसी के बारे में कोई भविष्यवाणी करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि जिस रोग को हम काफी गंभीर समझ रहे हो हो सकता है वो चिकित्सकों के लिए बिलकुल सामान्य हो।दुनियां में ऐसे अनेकों उदाहरण भरे बी पड़े हैं जिनमे 6 -12 माह तक कोमा में पड़ा व्यक्ति सामान्य जिंदगी जीने लगता है और रास्ते चलता एक सामान्य व्यक्ति मर जाता है।बचपन का मंदबुद्धि बालक आगे चलकर महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन बन सकता है।अतः जिससे भी मिले उसका उत्साहवर्धन करें आपके उत्साह के दो बोल सामने वाले की जिंदगी बदलने की क्षमता रखते हैं

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