चिन्ता छोड़ो, सुख से जीयो

 चिन्ता और तनाव ये दोनों शब्द दिखने में तो सामान्य शब्दों जैसे ही नजर आते हैं लेकिन ये मानव के सबसे बड़े शत्रु है।जितना नुकसान एक शत्रु नहीं पहुंचा सकता उससे कई गुना नुकसान ये पहुंचा देते हैं।आज जितनी बीमारियाँ देखने को मिल रही है उनका सबसे बड़ा कारण तनाव है शेष अन्य कारण इतने अधिक प्रभावशाली नहीं है।उच्च रक्तचाप,रक्तशर्करा,ह्रदय सम्बंधित रोग,हार्मोन्स सम्बंधित रोग जो आज बहुतायत में देखने को मिलते हैं इनमें चिन्ता और तनाव बहुत बड़ा कारण होता है।लेकिन इस कारण को हमेशा नजर अंदाज कर दिया जाता है।चिकित्सक किसी रोगी से कहते भी हैं की चिंता फ़िक्र छोड़कर मस्त रहा करो तो अमूमन रोगी का जवाब होता है "डॉक्टर जी मेरे किस बात की चिन्ता में तो एकदम मस्त ही रहता हूँ"डॉक्टर चेहरे को देखकर भांप रहा है की अंदर इसके घुन लगा हुआ है लेकिन वो बन्दा उसकी बात को मंजूर नहीं करता और दिखाकर आने के बाद लोगों के बीच डॉक्टर की खिल्ली उड़ाता  नजर आता है और कहता है कि डॉक्टरों के कुछ समझ में तो आता नहीं और कह देते हैं की चिन्ता मत किया करो।जबकि यह वास्तविकता है चाहे हम स्वीकार करें या न करें।चलिए देखते हैं कैसी-कैसी चिंताएं हमने पाल रखी है और क्या है उनका अस्तित्व।किसी जान पहचान वाले को कोई रोग हो गया और उसके कारण उसकी मृत्यु हो गई तो उसके जैसे लक्षण हमें अपने शरीर में भी नजर आने लगते हैं और स्वस्थ होते हुए भी अपने आपको बीमार समझने लगते है जबकि ये आशंका पूरी तरह निर्मूल है कि किसी दूसरे को कोई रोग हो वो अपने शरीर में भी हो और मान लो हो भी गया तो यह भी जरुरी नहीं की वो मर गया तो हम भी मरेंगे ही।जिस दिन किसी समाचार पत्र में पढ़ लेंगे कि किसी स्कूल बस का एक्सीडेंट हो गया तो उसी दिन से बच्चा जब तक स्कूल से घर नहीं लौटता तब तक दिमाग में दुर्घटना ही घुसी रहेगी जबकि ऐसा कोई नियम नहीं है की हर स्कूल बस का एक्सीडेंट होता हो।किसी नामी संस्थान में बच्चे को पढ़ने के लिए भेज दिया तो उसी दिन से तनाव चालू कि कहीं असफल हो गया तो,खुद के साथ-साथ बच्चे का तनाव भी इस वजह से बढ़ जाता है कि में परिवार कि अपेक्षाये पूरी न कर पाया तो?और यह तनाव उसकी सफलता की संभावनाओं को कम करने का काम करता है।इसका बेहतरीन उदाहरण कोटा के आई आई टी के छात्रों को माना जा सकता है जहाँ आत्महत्या के केस निरन्तर सामने आ रहे हैं।कोटा आने वाला हर विद्यार्थी यह सोचता है कि यहाँ तो बस इंजीनियर बनाने कि फैक्ट्री लगी हुई है और यहाँ आने का मतलब ही इंजीनियर बनना है यदि यहाँ आकर में असफल रहा तो लोगों को क्या मुंह दिखाऊंगा और असफल होने पर आत्महत्या तक कर बैठता है उसे यह नहीं मालुम की भाई इस दुनियां में केवल इंजीनियर ही सुखी नहीं है और काम करने वाले भी यहाँ ख़ुशी के साथ जी रहे हैं।आजकल के माता पिता जो अपने आपको मॉडर्न समझते हैं अपने लाडलों की पढाई को लेकर सबसे ज्यादा तनाव में नजर आते हैं।बच्चा 2 साल का हुआ और उसकी पढाई को लेकर चर्चा शुरू हो जाती है जैसे ही 2.5 साल का हुआ एडमिशन की तैयारी शुरू और फिर हो जाता है उसकी पढाई को लेकर,उसके भविष्य को लेकर तनाव शुरू।बच्चा स्कूल से घर आया की ट्यूशन का समय शुरू,ट्यूशन से घर लौटा तो उसकी नोट बुक देखने का शिलशिला शुरू और स्कूल और ट्यूशन से मिले ढेर सारे होमवर्क को लेकर तनाव शुरू।समझ में नहीं आता कि ये अभिभावक अपने बच्चों के शुभचिंतक हैं या दुश्मन।खुद तनाव पालेंगे और बच्चे को तनाव देंगे।उन्हें यह नहीं मालुम कि इस खेलने खाने की उम्र में दिया गया यह तनाव आगे चलकर कितना घातक होगा और कैसे उस बच्चे के भविष्य को चौपट करेगा।बच्चे के यदि 90% से कम नंबर आ जायेंगे तो माता पिता के पैरों तले से जमीन ही खिसक जायेगी।ऐसे माता पिता को कम से कम दुनियां की नामी हस्तियों की जीवनी पढ़कर यह जरूर देखना चाहिए की उनकी सफलता में उनकी पढाई का कितना प्रतिशत योगदान रहा है।क्या वे भी 90% से ऊपर वाले ही थे?दुनियां में ऐसे अनगिनत सफल लोग मिल जायेंगे जो अपनी स्कूली पढाई में जीरो थे और आज वे हीरो है।बस उन्होंने तनाव नहीं पाला जिससे उनका दिमाग उन्हें आगे बढ़ने कि राह दिखाता रहा और वे बढ़ते रहे।आज बस इतना ही इसी विषय पर आगे और चर्चा करेंगे।


Comments

Popular posts from this blog

एक बेटा तो होना ही चाहिए

गलती करना मानव का स्वभाव है