देखा देखी का झगड़ा

अरे अपने पड़ोसी वर्मा जी का बेटा आई ए एस की तैयारी कर रहा है और तूँ जाने कहाँ खोया हुआ है क्या रखा है इन मार्केटिंग की किताबों में जो सारे दिन इन्ही से चिपका रहता है। वास्तव में मैं तो बड़ा ही बदकिस्मत हूँ कल तक मेरे सामने यूँ ही घूमने वाला वो आज कितने बड़े शो रूम का मालिक बना बैठा है मेरी तो यह लाइन ही गलत है इसमें उन्नति की कोई गुंजाइस ही नहीं है। देख वो कितना धर्मात्मा है सुबह उठकर सबसे पहले नहा धोकर मंदिर जाता है उसके बाद ही अपनी दिनचर्या प्रारंभ करता है और एक तू है आदि आदि ऐसे कितने ही किस्से हमें रोजमर्रा की जिंदगी में सुनने को मिलते हैं।और आज जितनी भी परेशानियां,जितनी भी आत्महत्त्याएं हो रही है उन सब का कारण बस इस प्रकार की कहानियां ही है।बेटे की रुचि फिल्मों में काम करने की है माता पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते हैं महज इसलिए की उन्होंने सुन रखा है की इंजीनियरिंग का आजकल बहुत क्रेज है बेटा दुविधा में है दूसरे अन्य लोग भी यही सलाह देते हैं की माता पिता तेरे भले के लिए ही कह रहे हैं तू अभी बच्चा है तू नहीं समझेगा तो तुझे वो ही करना चाहिए जो बड़े लोग कहते हैं और वह बच्चा अपने सपनो को छोड़कर माँ बाप के सपनों को पूरा करने में लग जाता है लेकिन बिना रुचि के वो इसमें सफल नहीं हो पाता और सदा के लिए एक कुंठित जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो जाता है।एक व्यक्ति की रूचि खूब पैसा कमाने में है और वह बचपन से ही कुछ बड़ा करने का सपना संजोये है और वो इसमें सफल हो जाता है व शहर का एक बड़ा व्यवसायी बन जाता है उसीका बचपन का साथी जो बहुत अच्छी कढ़ाई बुनाई में पारंगत है लेकिन अपने साथी की देखादेखी उसी के समकक्ष व्यापार में कूद पड़ता है और अपनी जिंदगी की जमा पूँजी को दांव पर लगा बैठता है और फिर बैठकर अपनी किस्मत को कोसता है एवं मंदिर की चौखटों से लेकर ज्योतिषियों के दरवाजो पर हाजिरी देता घूमता है। ये सब उदाहरण वर्तमान की मानवीय सोच के दिवालियेपन की और इशारा करने के लिए पर्याप्त है।कहने का मतलब यह है की इस दुनियां में पैदा होने वाला हर प्राणी अपने अलग जेनेटिक कोड के साथ पैदा होता है सभी की शक्ल सूरत जहाँ एक दूसरे से मेल नहीं खाती उसी प्रकार सभी की सोच,शारीरिक क्षमता,रूचियां आदि भी भिन्न भिन्न होती है।किसी को खाने में केले पसंद है तो किसी को केले से घृणा है यहाँ तक की एक ही समय में जुड़वां पैदा हुए लोगों में भी जमीन आसमान का अंतर देखने को मिल सकता है यह सब कुछ जानने के बाद भी हर व्यक्ति दूसरे की देखादेखी में ज्यादा विश्वास करता है और अपने विचार भी दूसरे पर थोपने की कोशिश करता है बस सारा जीवन का झगड़ा यहीं पर है।अगर व्यक्ति वह बनने का प्रयास करें जो वह वास्तव में बनना चाहता है और दूसरे को भी वैसा ही बनाने में सहयोग करें जैसा की सामने वाला बनना चाहता है तो यही जिंदगी जो नीरस लग रही है रसपूर्ण लगने लगेगी।दूसरा सब्ज़ी खरीदते समय मोलभाव करता है और में नहीं कर पाता तो कोई बात नहीं जो आनंद उसे मोलभाव करने में आता है वो ही आनन्द मुझे दो पैसे ज्यादा खर्च करने में आना चाहिए।एक बार मैं अपने किसी मित्र से कोई प्रेरणादायी विचारों की पुस्तक के बारे में चर्चा कर रहा था तो पास में ही खड़े दूसरे मित्र ने जो की भारत सरकार में एक वैज्ञानिक अधिकारी है ने टोकते हुए कहा की दूसरे के विचारों को कब तक पढ़ते रहोगे अपनी प्रेरणा के विचार खुद लिखो उसकी वो बात मुझे अंदर तक झकझोर गई की दूसरे के विचारों को पढ़कर तो सिवाय हीनता के कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि में उन जैसा नहीं हूँ मेरी ब्रेन केमिस्ट्री अलग है और बाकि दुनियां की अलग क्योंकि किसी को फकीरी में आनन्द आता है तो किसी को अमीरी में मुझे कहाँ आनन्द आता है यह मेरे अलावा और कौन जान सकता है।

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