लोग क्या कहेंगे?

यदि मैंने ऐसा नहीं किया या ऐसा करूँगा तो लोग क्या कहेंगे,कहीं मेरी और मेरे परिवार की इज्जत को बट्टा लग गया तो,नाते रिश्तेदारों में मेरी नाक कट गई तो आदि आदि। न जाने मनुष्य के मन में ऐसे ऐसे कितने विचार आते हैं जो उसको गुलामी की और धकेलने का काम तो करते ही हैं साथ ही उसके विकास में भी रोड़ा बनते है।प्रसिद्ध मोटिवेश्नल स्पीकर और अंतरास्ट्रीय ख्याति प्राप्त कम्पनी इमैजिन बाजार के चीफ संदीप माहेश्वरी तो इसे सबसे बड़ा रोग बतलाते हैं उनके शब्दों में "सबसे बड़ा रोग,क्या कहेंगे लोग" कहने का मतलब जो इस लोगों के कहने का विचार करता है वो अपनी जिंदगी की गाड़ी को ही अटका देता है और जो इसकी परवाह नहीं करता वो हर तरह से सफल होता है अरे भाई जब जिन्दगी अपनी है विचार अपने है तो फिर लोगों के कहने से डर कैसा इस दुनियां की जितनी जनसंख्या है उतने ही दिमाग है हर व्यक्ति के सोचने का अपना अलग तरीका है और यह भी सही है की हर व्यक्ति अपने हिसाब से सही ही होता है।क्योंकि जो भी कुछ वो अपने बारे में या हमारे बारे सोचता है में वो अपनी जगह बिल्कुल सही होता है इसी प्रकार हम कुछ करते है तो अपने हिसाब से सही ही करते हैं तो फिर अपने किये पर दूसरे की प्रतिक्रिया पर हम क्यों सोचे यह सोचने का काम उसी का है तो उसीको चिंता करने दे।बात चल रही है परम्पराओं के अंधानुकरण की तो कई लोग ऐसे भी है जो इनसे मुक्त होना चाहते हैं लेकिन वो लोगों के डर से उनका बोझ ढोते हैं।ऐसी परम्पराओं में मृत्यु भोज,जात जडुले, दहेज़,शादी विवाह के लिए गुण मेलापक,जन्म कुंडलियों का मिलान जैसी अनेक परम्पराएँ शामिल है जिनका बोझ कई विवेकी लोग अनचाहे ढो रहे हैं सिर्फ लोगों को खुश करने के लिए।यही बात जीवन के हर मोड़ पर लागु होती है और व्यक्ति बहुत सी अपनी इच्छाओं को इसी एक डर के आगे दफ़न कर देता है।में यदि यह सोच लूँ कि ब्लॉग पर मेरे विचारों को पढ़कर लोग क्या सोचेंगे तो मेरी एक शब्द लिखने तक की हिम्मत नहीं होती और लिखना जो मेरा सबसे पसंदीदा काम है से में वंचित रह जाता।मेरा एक मित्र जो पहले मेरा पडोसी भी था।गांव में एक छोटी सी दुकान चलाता था लेकिन उसके मन में कुछ बड़ा करने की इच्छा हमेशा से थी इसके लिए उसने काफी प्रयास किये लेकिन जिस धंधे में भी उसने हाथ डाला हर जगह असफल रहा और कर्ज में डूब गया पूरे गांव के लोग भाई बंधु रिश्तेदार सभी उसके आलोचक बन गए और सभी ने एक ही राय दी की दुकान पर बैठकर दुकानदारी कर इधर उधर भागकर बर्बाद मत हो लेकिन उस बन्दे ने किसी की एक न सुनी और प्रयास करता रहा आज वह जयपुर नगर में अपना स्वयं का बड़ा व्यापार कर रहा है और समस्त सुख सुविधाओं के साथ एक ख़ुशी की जिंदगी जी रहा है और वे ही लोग जो पहले उसके आलोचक थे आज उसकी प्रशंसक हैं तो मेरे कहने का मतलब यही है की दुनिया हमारे बारे में क्या सोचती है यह कोई मायने नहीं रखता,मायने रखता है की हम अपने बारे में क्या सोचते हैं।तो स्वयं अपनी नज़रों में हमेशा उठे रहें क्योंकि कुछ भी नया करने के लिए कोई भी दूसरा कभी भी अनुमति नहीं देगा उसके लिए तो एकबार खुद को ही आगे आना होगा जिस दिन सफलता मिलेगी उस दिन वे ही आलोचक सबसे बड़े प्रशंसक होंगे।तो मेरे कहने का मतलब यह है कि दिल में उठी किसी भी नेक इच्छा जिससे स्वयं का और समाज का भला होने वाला हो उस इच्छा को महज इसलिए न दबने दे कि लोग क्या सोचेंगे और क्या कहेंगे।इतिहास गवाह है कि जितने भी महापुरुष और समाजसुधारक हुए हैं सभी के बारे में लोगों ने वही कहा था जिसका हमें डर लगता है।समाज में फैली सती प्रथा,पर्दा प्रथा जैसी मान्यताओं का सफाया करने में ऐसे ही लोगों ने बीड़ा उठाया था जिन्हें लोगों के कहने की परवाह नहीं की। आज के लिए बस इतना ही।

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