परम्पराओं में उलझा मानव

लेख को शुरू करने से पहले में लेख के विषय में अपनी स्वयं क़ि सोच के बारे में बतलाना चाहता हूँ क़ि न तो में परम्पराओं का विरोधी हूँ और न ही समर्थक।में उस परम्परा को स्वीकार करने में बिल्कुल भी गुरेज नहीं करता जिनका मेरे वर्तमान जीवन में मुझे कोई फायदा नजर आता हो लेकिन परम्परा को महज इस आधार पर स्वीकार नहीं करता की उसे मेरा परिवार पीढ़ियों से मानता आ रहा है और जिसका वर्तमान में कोई लॉजिक नजर नहीं आता। मुझे कई बार आश्चर्य होता है क़ि द्वापर युग के श्रीकृष्ण से लेकर आज के मानव तक सभी ने इस संसार को निरंतर परिवर्तनशील माना है,यानि क़ि आज से कुछ समय पूर्व जो सत्य था वो आज भी सत्य हो यह जरुरी नहीं होता फिर भी सदियों पुरानी परम्परा को आज भी घसीटा जा रहा है यहाँ तक क़ि कई परिवारों में इनको लेकर आपसी मनमुटाव भी देखने को मिलते हैं यदि सास परम्परावादी हो और बहु थोड़ी वैज्ञानिक सोच वाली हो तो आपसी मनमुटाव स्वाभाविक ही है। चलिए ऐसी ही कुछ प्रचलित परम्पराओं पर विचार करते है।हिन्दू समाज में अमावस्या तिथि को किसी भी शुभ काम के लिए टाला जाता है यदि किसी को यात्रा पर जाना हो यहाँ तक की कई परिवारों में तो किसी बीमार को डॉक्टर को दिखाने के लिए भी इस तिथि को नहीं ले जाया जाता मैंने इस बारे में कई लोगों से पूछा कि यदि अमावस्या इतनी बुरी है तो यह मुस्लिम या ईसाई सम्प्रदाय के लिए बुरी क्यों नहीं होती तो जबाब मिला की वो मानते ही नहीं तो उनके लिए बुरी कैसे होती तो में पूछना चाहता हूँ कि जब मानने से ही अच्छी और बुरी है तो फिर उसे अच्छा ही क्यों नहीं मान लिया जाता।अब में बता दूँ की इस तिथि को आवागमन के लिए इसलिए टाला जाता था क्योंकि इस तिथि की रात अँधेरी होती है और पहले आवागमन के लिए साधन नहीं हुआ करते थे या तो पैदल या पशु वगैरह का प्रयोग होता था तो यात्रा ममें इन अँधेरी तिथियों को टाला जाता था वर्तमान की स्थितियां बिल्कुल बदल चुकी है आज हमारे पास रोशनी की व्यवस्था है और हर तरह के साधन उपलब्ध है। इसपर परम्पवादी लोगों का तर्क होगा कि मुहूर्त शास्त्रों में इस तिथि को शुभ कार्य के लिए मना किया गया है तो हम उसका उलंघन कैसे करें तो भाई जिन परिस्थितियों में मुहूर्तशास्रों की रचना हुई थी तो या तो वे परिस्थितियां अब पैदा करो या वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार नए मुहूर्तशास्त्र की रचना कर लो और हर एक तिथि और वार को शुभ मानना शुरू कर दो फिर देखो कैसे सब कुछ शुभ होता हैहै। कई लोग शगुन देखकर ही किसी काम के लिए निकलते हैं और अपनी मान्यता के अनुसार शगुन न होने पर या तो तनावग्रस्त हो जाते हैं या उस काम और यात्रा को टाल देते है में उन लोगों से पूछना चाहता हूँ की सामने वाले को अच्छा या बुरा मानने का आपका पैमाना क्या है ,यदि किसी महिला का पति मर गया तो इसमें उस महिला का क्या दोष है जो उसे अपशगुनी माना जाता है दुःख की बात तो तब होती है जब स्वयं के बेटे बेटी की शादी के मांगलिक कार्यों में अपनी जन्मदात्री माता को सामने आने से मना कर दिया जाता है महज इसलिए की वो विधवा हो गई है तो थोडा विचार करें और सदियों पहले की लिखी बातों पर महज इसलिए विश्वास न करें की यह वर्षो से चली आ रही है हर मान्यता पर विवेक का प्रयोग करें और फिर उसे स्वीकार करें। आगे हम इस विषय पर और चर्चा करेंगे आज बस इतना ही।

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