एक कटु सत्य

आज हम चर्चा करेंगे उस मुद्दे पर जिसे मानते तो सब है पर व्यवहार में न तो सरकारें और न ही कोई सामाजिक संगठन इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आता।मुद्दा है मानव स्वास्थ्य से जुड़ा मेरे कहने का अभिप्राय है कि किसी भी देश को विकसित बनाने में उस देश की जनता का स्वस्थ होना विकास का पहला कारक है।लेकिन इस मामले में हम कितने गम्भीर है इसका आकलन वर्तमान में अस्पतालों की बढ़ती भीड़ को देखकर आसानी से किया जा सकता है।इस मामले में भारत की स्थिति शायद अन्य विकासशील और विकसित देशों के मुकाबले कही ज्यादा गम्भीर है।ऐसा भी नहीं है कि इस मुद्दे पर सोचा ही नहीं जा रहा हो,इस मामले में काफी मंथन चल रहा है और आमजन को स्वस्थ रखने के भरसक प्रयास हो रहे हैं लेकिन प्रयासों के बावजूद बीमारियो के आंकड़े दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं इसके लिए कभी खानपान को तो कभी प्रदूषण को जिम्मेदार बताया जा रहा है लेकिन एक सबसे बडा कारण जिस पर न तो सरकारें और न ही जिम्मेदार अधिकारी ध्यान दे पा रहे हैं वह कारण है अंधाधुंध दवाइयों का प्रयोग और वो भी अपरशिक्छित लोगों के हाथों।यदि किसी का 50 हजार का स्कूटर ख़राब हो जाये तो उसे किसी विश्वसनीय मिस्त्री के हाथों से रिपेयर कराया जायेगा।पान खाने या चाय पीने की तलब हो तो उसी दुकान पर जाना होगा जिसकी क्वालिटी बढ़िया होगी लेकिन जब व्यक्ति बीमार होगा तो इलाज के लिए उस जगह जाना पसंद करेगा जहाँ कम खर्चे में काम हो।भारत में तो ऐसे इलाज करने वालों की भरमार है जिनके पास न तो शरीर विज्ञानं का ज्ञान है और न ही इंसानियत के कोई गुण रोगी को महज एक ग्राहक समझा जाता है और धड़ल्ले से ऐसी ऐसी दवाइयाँ खिला दी जाती है जिनको लिखने के लिए एक गुणी चिकित्सक को हजार बार सोचना पड़ता है।दवा उत्पादकों के लिए ये लोग सबसे बड़े कमाऊ पूत होते हैं क्योंकि जो उत्पाद वे बेचना चाहते हैं उनका वो उत्पाद आसानी से बिकता है और इनके हाथों से अनावश्यक दवाइयाँ खाकर आगे चलकर वही रोगी उनका सबसे बड़ा उपभोक्ता होता है।इस खेल का सभी जिम्मेदारों को पता होने के बावजूद सब कुछ खुले आम हो रहा है। कैसे होती है चिकित्सा और क्या होते है परिणाम इस पर थोड़ी दृष्टि डाल लेते हैं (1)इन चिकित्सको द्वारा अपने रोगी को दी जाने वाली पहली दवाई एक एंटीबायोटिक होती है जिसकी जरुरत केवल बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी में ही होती है न तो इन्हें दवा की दी जाने वाली मात्रा का ध्यान होता है और न ही शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का जिसका खामियाजा इनसे इलाज लेने वाले मरीज को उठाना पड़ता है बार बार एंटीबायोटिक खाने से जब कभी बैक्टीरिया जनित रोग होता है तो दवाइयाँ बेअसर हो जाती है फिर रोग के जटिल होंने का दोष किस्मत को दे दिया जाता है जबकि इसमें दोष उस फ़र्ज़ी चिकित्सक का होता है जो साधारण सर्दी जुकाम में रोगी का हितेषी होता है (2)इन चिकित्सको का दूसरा बड़ा हथियार होता है पावरफुल दर्दनिवारक,जो रोगी को तुरंत फायदा पहुंचा कर उसके लीवर और गुर्दो की धीरे धीरे बत्ती बुझाने का काम करती है। (3)लोगों को यह कहते सुना जाता है की हमारे गांव के फला डॉक्टर के हाथ में इतना जस है की बड़े बड़े डॉक्टर जिसको ठीक नहीं कर सकते उसे वह मिनटों में ठीक कर देता है।यह जस उस डॉक्टर के हाथ में नहीं होता बल्कि उसके द्वारा दी गई उन स्टेरॉयड दवाओं का होता है जो एक बार तो रोगी के लिए संजीवनी साबित होती है लेकिन आगे चलकर कई देवी देवताओं को धोकने पर मजबूर कर देती है। इस गोरख धंधे का सबको मालूम होते हुए भी सभी अनजान बनेहुए हैं और भविष्य के लिए आंकड़े तैयार करने में लगे हुए हैं कि आगामी 10 वर्षों में जटिल बिमारियों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि होगी इस वृद्धि का जो कारण सामने है उसको दूर करने की जहमत कोई नहीं उठाता।

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