आयुर्वेद के नाम से ईलाज का गोरखधंधा

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति ईलाज की एक प्राचीन चिकित्सा पद्दति है इस चिकित्सा पद्दति की समाज में एक निरापद चिकित्सा पद्दति के रूप में अलग ही पहचान है,इस पद्दति के बारे में लोगों में एक धारणा बनीं हुई है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा से यदि फायदा न भी हुआ तो नुकसान भी कुछ नहीं होता जबकि एलोपैथिक दवाइयों के साइड इफ़ेक्ट होते ही है लोगों की इसी धारणा का फायदा एकमात्र व्यापारिक सोच वाले चिकित्सक, झोला छाप,दवा निर्माता,साधु महात्मा आदि लोग जमकर उठाते हैं।इसके सबसे बड़े उदाहरण समाचार पत्रों,टेलीविजन में आने वाले विभिन्न प्रकार की बिमारियों के इलाज का दावा करने वाले विज्ञापन है वर्तमान में हर सक्स की जुबान पर छाये बाबा रामदेव भी इसी दौड़ में सबसे आगे है।आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्दति से चिकित्सा का सबसे पहला पड़ाव होता है रोगी की प्रकृति की पहचान करना उसके बाद रोग के कारण को समझना और रोगी और उसके बारे में गहन अध्ययन के बाद उसकी प्रकृति के मुताबिक दवा का चुनाव करना ।यदि चिकित्सक रोगी की प्रकृति को जाने बिना अपने रटे रटाए नुस्खों से रोगी की चिकित्सा करता है तो वह रोगी का अहित ही कर रहा होता है और प्रकृति विरुद्ध दी गई दवा का एलोपैथी दवा से भी बड़ा साइड इफ़ेक्ट होता है। बाबा रामदेव ने भी बीमारियों के हिसाब से दवा लेने का जमकर प्रचार प्रसार किया है और अपने पतंजली चिकित्सालयों पर रोगियों की चिकित्सा करने की व्यवस्था की है इसके लिए प्रत्येक केंद्र पर वैद्य की नियुक्ति भी की है लेकिन इन केंद्रों पर नियुक्त वैद्य अपना स्वयं का दिमाग कम बाबा रामदेव के दिमाग से ज्यादा काम करता है यहाँ के वैद्यो के पास एक लिस्ट होती है जिसमे किस बीमारी में कौन कौनसी दवा देनी है का वर्णन होता है बस चिकित्सक का काम उस लिस्ट के आधार पर पर्ची पर दवा लिखना होता है ।इन केंद्रों का एकमात्र उद्देश्य दवाओं की बिक्री करना होता है । वर्तमान में चाहे कोई भी समाचार पत्र हो या अन्य कोई भी संचार माध्यम इस प्रकार के चमत्कारिक इलाज के दावो के विज्ञापनों से भरे पड़े होते हैं इनमे उन बिमारियों के इलाज का दावा किया जाता है जिनका कि केवल उचित प्रबंधन ही किया जा सकता है पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता।हर व्यक्ति की यह हार्दिक इच्छा होती है की उसकी बीमारी का जड़ से इलाज हो और रोज रोज की दवा खाने से छुटकारा मिले,इस सोच के चलते वह इस प्रकार के इलाज के चक्कर में पद जाता है जिनमे अपना समय,स्वास्थ्य और धन तीनो का नुकसान उठाना पड़ता है।मेरे इस लेख का आशय केवल यही है की बीमार होने पर चाहे इलाज किसी भी चिकित्सा पद्दति से कराएं लेकिन उस पद्दति के विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही कराएं झूंठे सब्जबाग दिखाने वाले विज्ञापनों से बचकर रहें ।ऐसे इलाज फायदेमंद कम नुकसानदायक ज्यादा होते हैँ। बस आज इतना ही

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