मनोरोग और अंधविश्वास (2)


कल हमने मनोरोगों के निदान में आने जटिलता को समझा इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए आज निदान करने के बाद उपचार के दौरान आने वाली परेशानियों पर चर्चा करेंगे।आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं ने मनोरोगों के सफल उपचार करने में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है आज इन रोगों का यदि सफल प्रबंधन किया जाये तो ऐसे रोगी पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाते हैं विशेष बात तो यह है कि उपचार में रोगी को दी जाने वाली दवाओ के दुष्प्रभाव भी न के बराबर है जिससे यदि दवा का प्रयोग लंबे समय तक भी करना पड़े तो भी शरीर पर अन्य कोई दुष्प्रभाव की गुंजाइस नहीं रहती लेकिन लोगों में व्याप्त गलत धारणाओं के कारण इनके उपचार में काफी लापरवाही बरती जाती है जिससे रोगी का रोग जटिल हो जाता है और पूरे परिवार के लिए परेशानी का कारण बन जाता है। क्या है वे धारणाये जो रोग के उपचार में बाधक बनती है उन पर क्रमवार चर्चा करते है।  (1)लोगों में धारणा है कि डॉक्टर केवल नींद की दवाएं देते हैं जिनकी लत लग जाती है जबकि वास्तविकता यह है कि वर्तमान में प्रयुक्त दवाओ में नींद आने की कोई परेशानी नहीं होती और दवा का सेवन करते हुए व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम आसानी से कर सकता है।(2)अड़ोसी पड़ोसी और मिलने जुलने वाले लोग दवा शुरू करने के 5-7 रोज बाद कोई सुधार नजर नहीं आने पर दवा को या तो बंद करने की सलाह दे डालते हैं या डॉक्टर बदलने की सलाह दे देते हैं और उनकी सलाह को निःसंकोच मान लिया जाता है और यही रोगी और उसके परिजनों की सबसे बड़ी भूल होती है।क्योंकि मनोरोग के इलाज में प्रयुक्त दवाइयाँ अपना असर दिखाने में थोडा समय लेती है ,दवा की शुरुआत कम पावर की दवा से की जाती है बाद में धीरे धीरे दवा का पावर बढ़ाया जाता है इस प्रक्रिया में एक माह तक का समय लग सकता है लेकिन लोगों के भ्रमित कर देने से उपचार की पूरी प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है अतः कोई भी दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न तो शुरू करें और न ही बंद करें। क्रमशः----

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