आम आदमी चिकित्सक

शरीर रोगों का घर है ऐसा अमूमन कहा जाता है इसका आशय यह है कि वातावरण में अनगिनत कारण हर समय मौजूद रहते हैं जो जीवों के शरीर को रोगग्रस्त करने में सहायक होते हैं ।प्रत्येक जीव के शरीर में मौजूद कुदरती रोग प्रतिरोधक शक्ति इन रोग पैदा करने वाले कारणों को कमजोर करके शरीर को रोगग्रस्त होने से बचाती है जब यह कुदरती शक्ति किन्ही कारणों से कमजोर पड़ जाती है तो हम रोगग्रस्त हो जाते हैं लेकिन शरीर के रोगग्रस्त हो जाने के बाद यह कुदरती शक्ति रोग से अपनी पूरी ताकत से लड़ती है,जब इस शक्ति पर रोग ज्यादा हावी हो जाता है तब हमें अन्य उपाय रोगमुक्त होने के लिए करने पड़ते है।मनुष्य अपनी आदत के मुताबिक अपने रोग की जन जन से चर्चा शुरू कर देता है और फिर शुरू हो जाता है आम आदमी के आम नुस्खे बतलाने का सिलसिला,नुस्खा बताया भी ऐसे जाता है मानो बताने वाला किसी प्रतिष्टित मेडिकल कॉलेज का प्रोफ़ेसर हो।कारण की भारत जैसे देश में तो यहाँ की जितनी जनसंख्या जिस समय होती है उतनी संख्या ही डॉक्टरों की होती है यहाँ पर तो बस किसी के सामने अपने रोग की चर्चा करो तुरंत कोई न कोई नुस्खा हाजिर हो जाता है।और इस इत्मिनान के साथ बताया जाता है की आप लेके तो देखो फायदा न हो तो हमें कह देना यहाँ तक की नुस्खा बताने वाला खुद चर्चा करने वाले के रोग से स्वयं सालो से पीड़ित होगा और इलाज के लिए कई डॉक्टरों को दिखा चूका होगा लेकिन दूसरे को तो कोई न कोई इलाज बता ही देगा ।यहाँ तक कि WHO की और से जिन रोगों को असाध्य की श्रेणी में रखा गया है उनका इलाज बताने वाले भी हर समय सर्वसुलभ होते हैं ।कहने का मतलब यह है कि जहाँ तक हो सके अपने शरीर की किसी भी बीमारी के बारे में जन जन से चर्चा करने के और उनके बताये नुस्खे प्रयोग करने के स्थान पर किसी अधिकृत व्यक्ति से ही चर्चा करें और उसके बताये अनुसार चिकित्सा करें जिससे फिजूल का धन,समय,और स्वास्थ्य ख़राब न हो।कई बार इन सुने सुनाये नुस्खों से बीमारी और ज्यादा जटिल हो जाती है और व्यक्ति अपनी स्वयं की गलती को किसी भगवान या भाग्य के गले डाल देता है।

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