कुंडली मिलान
अजी साहब लडका सुन्दर सुशील,और पढ़ा लिखा है अपने पैरों पर खड़ा है आय भी काफी अच्छी है,परिवार भी खानदानी है सभी लोग मिलनसार है लेकिन दिक्कत यह आ गई कि अपनी लड़की मांगलिक है उसे मांगलिक लड़का ही चाहिए इसलिए टालना पड़ा।क्या करें बच्ची की जिंदगी का सवाल है।ऐसे शब्द आज के वैज्ञानिक युग में उन लोगों के मुख से सुनने को मिलते है जो अपने आपको ज्ञानी समझते है।और ये वे ही ज्ञानी लोग होते हैं जिनकी धार्मिक आस्था भी दृढ होती है।ये लोग धर्मशास्त्रों को प्रमाण मानते है,पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्वास करते हैं।और यह कहते हुए घूमते हैं कि होनी को कौन टाल सकता है।अब एक तरफ तो होनी को टाल नहीं सकते दूसरी तरफ मंगल दोष,कुंडली मिलान आदि सब अतार्किक बातों को प्रत्यक्ष से ज्यादा महत्त्व देते हैं।मैंने भी इस ज्योतिष शास्त्र को समझने और इसका भरपूर लाभ लेने कि कोशिश की और इसके लिए काफी पुस्तकों का अध्ययन किया।पुरे परिवार की कुंडलियों का विश्लेषण किया।आस पास के कई ज्योतिषियों से मिलकर मेरी जिज्ञासा प्रकट की।परिणाम जो निकला वो यह था की जितनों से मिला सबके अलग-अलग फलादेश थे और उनके पीछे अपने-अपने तर्क।लेकिन उनके तर्क मेरी तार्किक बुद्धि को रास नहीं आये।में इसके अंदर जितना घुसा उतना ही दूर होता रहा और जब मेरी छोटी बिटिया का जन्म 29 नवंबर 2009 को प्रातः 7:23 बजे हॉस्पिटल में हुआ उसी लेबर रूम में बिल्कुल इसी समय पर एक अन्य बच्ची की किलकारी भी गूंजी।दोनों की कुण्डलियाँ बिल्कुल समान बनी।आज वो बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है और मेरी बच्ची अभी ठीक से बैठ भी नहीं पाती।ऐसा क्यों?इस क्यों का जवाब न तो मेरा स्वयं का ज्योतिषीय ज्ञान दे पाया और न ही किसी अन्य पेशेवर ज्योतिषी का।इस घटना के बाद से मैंने तो इस अनुमान आधारित ज्ञान से अपने को अलग कर लिया।इससे पूर्व तक तो में भी अपनी स्वयं की कुंडली के हिसाब से ही अपने को पाता था और इसका सबसे ठोस प्रमाण भी मेरे पास मेरे एकादस भाव के उच्च के सूर्य की दृष्टि पंचम भाव जिसे संतान का भाव कहा जाता है और इस योग का फलादेश प्रथम संतान का नाश या प्रथम संतान के लिए कष्टकारी होता है जो मेरे ऊपर शत प्रतिशत लागु हो रहा था लेकिन जब मिथुन लग्न की अन्य कुंडलियों में इस प्रकार के योग वालों की प्रथम संतान खुश नजर आई तो मेरी भी आँख खुली।लेकिन जब अन्य भलेमानुषों को अपने बेटे बेटियों की सगाई में इस एक अवैज्ञानिक कारण के आधार पर सामने वाले के सर्वगुणों को नकारते हुए देखता हूँ तो उनपर तरस आ जाता है क्योंकि उनके आंकलन के अनुसार तो शायद उन वर्गों में जहाँ ज्योतिष के इस स्वरुप से कोई लेना देना नहीं है उनके विवाह संबंध तो खटास भरे ही होते होंगे।जबकि वास्तविक आंकड़े यदि जुटाए जाये तो सर्वाधिक तलाक के मामले उन्ही संबंधो में मिलेंगे जिनके सर्वाधिक गुण मिले होंगे।जिनके प्रत्यक्ष गुण मिलाकर शादियां हुई है वे आज अटूट सम्बन्ध बने हुए हैं।इस लेख को पढ़कर शायद कुछ लोग सोचेंगे कि यह तो अपना-अपना विश्वास है।तो ठीक है भाई होनी को कोई टाल नहीं सकता यह भी तो आपका ही विश्वास है तो फिर दोनों में से किसी एक पर से तो विश्वास हटा लो।यह विरोधाभास कैसे चलेगा।शेष जिसकी जो मर्ज़ी।यदि मेरी यह चर्चा आपके गले नहीं उतरे तो मेरे उपरोक्त दोनों उदाहरणों का थोडा स्पष्टीकरण देने का कष्ट करें जिससे में अपनी सोच पर पुनर्विचार कर सकूँ और आपके विश्वास को नमन कर सकूँ।
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