चिन्ता कितनी सार्थक
कल हमने चिन्ता ओर तनाव से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की चर्चा के साथ इसके प्रकारों पर चर्चा की।आज हम चर्चा करते हैं कि चिन्ता अधिकांश भविष्य को लेकर होती है।वर्तमान क्षण की कभी किसी को चिन्ता नहीं होती,चाहे यह क्षण कितनी भी परेशानी भरा होगा।व्यक्ति हमेशा अगले क्षण की ही चिन्ता करता रहता है क्योंकि अगला क्षण हमेशा अनिश्चित होता है और उसको लेकर एक अनजान भय से हम भयभीत रहते हैं और यह भय ही हमारी सभी चिन्ताओं का कारण होता है।मजे की बात तो यह है की यह भय भी हमारी कल्पना की उपज ही होता है और इसके जिम्मेदार भी हम स्वयं होते हैं।यदि इस भय को मन से निकाल दिया जाये तो चिन्ता और तनाव हमसे कोसों दूर होंगे।हम भावी क्षण को लेकर हमेशा आशंकित रहते हैं और सोचते रहते हैं की कहीं ऐसा हो गया तो? बस ये ऐसा हो गया की तस्वीर हम खुद अपने दिमाग में बना लेते हैं यही तस्वीर हमें डराती है और यह डर ही चिन्ता का कारण बनता है उदाहरणार्थ बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाते हैं तो पहले ही कई बिमारियों की तस्वीर दिमाग में बना लेंगे और सोचेंगे कहीं डॉक्टर ने यह बता दिया तो,कहीं ये बीमारी बता दी तो और दिखाने के बाद पता चलता है की हमारी आशंका तो बिल्कुल निर्मूल थी और वो चिन्ता ख़त्म हो जाती है और अगली चिन्ता शुरू हो जाती है कहीं फायदा नहीं हुआ तो।इस प्रकार यह सिलसिला आगे से आगे चलता रहता है।एक का समाधान होता है और दूसरी नई चिन्ता का जन्म हो जाता है।कभी इस पर गौर करें तो पता चलेगा की हमारी 99 फीसदी चिन्ताएं तो व्यर्थ की थी क्योंकि जो कपोल कल्पित तस्वीर हमने बनाई थी वैसी तस्वीर कभी प्रत्यक्ष में बनी ही नहीं और जो 1 फ़ीसदी हमारी सोच के अनुसार बनी तो उनका हमारे पास कोई समाधान भी नहीं था।लाख कोशीश के बाद भी उसका बदलना असंभव था तो फिर चिन्ता किस बात की।इतनी चर्चा के बाद हमने जाना की चिन्ता का मूल कारण है भविष्य के बारे में सोचना और उसको लेकर भयभीत रहना।तो क्यों न हम इस भय को अपने मन से उखाड़ फेंके जो केवल कपोल कल्पित है।इस भय से बचने का एक ही तरीका है की भूत और भविष्य को छोड़कर एकमात्र वर्तमान क्षण को पकड़ा जाये और उसे पूरी जीवंतता के साथ जिया जाये।अगले क्षण क्या होगा इसका फैसला अगले क्षण पर ही छोड़ा जाये और बस उसके लिए इतना ही सोचा जाये की होगा सो देखा जायेगा।इसके लिए जो आस्तिक है वे "चिन्ता दीनदयाल को,मो मन सदा आनन्द।जायो सो प्रति पालसी रामदास गोविन्द।"ऐसा सोचकर अपनी सारी चिंताओं को अपने ईष्ट को समर्पित कर दें।और जो नास्तिक है वे अपने आपको प्रकृति की अनूठी कृति मानते हुए हर प्रकार की परिस्थितियों के मुकाबले के लिए यह सोचकर तैयार रहे की कोई भी परिस्थिति मुझसे बडी नहीं हो सकती।चाहे परिस्थिति कितनी भी विपरीत हो उसमे भी कुछ न कुछ अवसर जरूर छिपा होता है बस उस अवसर को खोजें और उसका भरपूर फायदा उठायें।
Comments
Post a Comment